जाण्यां करता चाल भतेरी Poem by Manish Shokeen

जाण्यां करता चाल भतेरी

Rating: 5.0

थी चन्द्रमा सी श्यान हूर की, सरड़क बीच खड़ी देखी,
मध जौबन्न की डीक बळै, न्यू जळती फूलझड़ी देखी ।

उस विश्वामित्र की कुटिया मैं, मनै मेनका हूर बड़ी देखी,
या अक्कल सारी हड़ ले गी, तेरै स्यर पै नाग चढ़ी देखी ।

मनै नाश कहाणी बड़ी देखी, तेरी सब तै डूबा ढेरी,
बीर के बळ मैं आया क्यूकर, जाण्यां करता चाल भतेरी।।

जिस कै लाग ज्या ओ ए जाणै, के बेरा पाट्टै पीड़ पराई का,
इब मोक्के तै भाजै मतन्या, तेरै बट्टा लागै पीठ दिखाई का ।

उस ऊत का के मूहँ लाणा, जो होज्या जूत लुगाई का,
शर्म कती तनै आती कोन्या, खा ग्या हर्फ सचाई का ।

कर दिया काम हँसाई का, तनै ढो दी इज्जत मेरी,
बीर के बळ मैं आया क्यूकर, जाण्यां करता चाल भतेरी ।।

Saturday, March 31, 2018
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
Kumarmani Mahakul 31 March 2018

Love remains with life and human beings feel love. This poem is amazingly and brilliantly penned...10

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