बिज्जल पाट्टै आसमां मे, लामणी सर पै आरी Poem by Manish Shokeen

बिज्जल पाट्टै आसमां मे, लामणी सर पै आरी

Rating: 5.0

बिज्जल पाट्टै आसमां मे, लामणी सर पै आरी
रामजी भी दुश्मन बन गया, सरकार तो थी ए न्यारी

ज्यूँ ज्यूँ बिजली कड़कै, उस किसान का कालजा धड़कै
खड़ी फसल रेत मे रळ ज्यागी, न्यू सोच के सिर भड़कै

बालकां की फीस भरनी, घर का खर्चा करना
के तो रामजी तू थम ज्या, ना मन्नै लटक के मरना

इतनी हाण मे पिरवा-पिछवा दोनू ढाल की चालगी
करकै न दो बूंदाबांदी, सारे बादलां न तारगी
और उसकी आंख्यां मे ख़ुशी के आंसू घालगी

न्यू लिख के इब ख़तम करू कविता इसते आगे बना नी पाया
११ लाइन मे किसान की जिंदगी का एक छोटा सा सीन दर्शाया

बिज्जल पाट्टै आसमां मे, लामणी सर पै आरी
Tuesday, April 4, 2017
Topic(s) of this poem: bio
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Manish Shokeen

Manish Shokeen

Najafgarh
Close
Error Success