ज़बान कटी इश्क़ तेरे की
मैं गूंगे गले तै गा लयूंगा..
रात चांदणी पड़या एकला
उलाहणे चाँद के, खा लयूंगा...
कड़ै गया वो मेरे तै सोहणा
वो मख़ौल जता के बुझैगा
नाड़ झुकाये खड़या रहूँगा
उस बखत बता के सुझैगा
मैं नन्ही नन्ही उन बूंदा मैं
कैसे बिना तेरे नहा लयूंगा
रात चांदणी पड़या अकेला
उलहाणे चाँद के, खा लयूंगा
ज्यब चालै पुरवा सीली सीली
या मन्द नब्ज़ भी थम ज्यागी
ये होंठ तरस ज्यां उन होंठा नै
हां सांस बेमौसमी जम ज्यांगी
बेशक ज्यान गवाणी पड़ ज्या
पर मन अपणा समझा लयूंगा
रात चांदणी पड़या एकला
उलाहणे चाँद के, खा लयूंगा...
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बेशक ज्यान गवाणी पड़ ज्या पर मन अपणा समझा लयूंगा इस खुबसूरत गीत की जितनी प्रशंसा करूँ कम है. बहुत बहुत धन्यवाद व बधाई आपको, मनीष शोकीन जी.