गुलेल मैं भर कै स्यतारे, आज असमान तड़काउं तो Poem by Manish Shokeen

गुलेल मैं भर कै स्यतारे, आज असमान तड़काउं तो

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बागीचे तै तोड़ कै एक डंडी, आज गुलेल बणाऊँ तो,
गुलेल मैं भर कै स्यतारे, आज असमान तड़काऊँ तो ।

कोहणी तक की खींच गुलेल मैं मारूँ न्यशाना चाँद पै,
टूट कै पड़ ज्या तेरे आंगण मैं ठा कै भर ल्यूं पान्द मैं,

देख भाळ कै चौगर्दै मैं ठा चाँद कांध कूद ज्याऊँ तो ।
गुलेल मैं भर कै स्यतारे, आज असमान तड़काउं तो ।।

गुलेल मैं भर कै स्यतारे, आज असमान तड़काउं तो
Monday, February 27, 2017
Topic(s) of this poem: love and dreams
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Najafgarh
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