सरस्वती वंदना daya Ki Drishti Se Poem by Anand Prabhat Mishra

सरस्वती वंदना daya Ki Drishti Se

दया की दृष्टि से हेरो हमें हे शारदे देवी ।

कुबुद्धि को मिटा हीय से सुमति दो, शारदे देवी ।

पड़ी मझधार में नईया नहीं कोई है यहां अपना,

खेवईया नींद में सोया जगा दो, शारदे देवी ।

न बल है, न बुद्धि और विद्या, न जप-तप दान शक्ति है,

तेरा हीं एक शरण हमको शरण दो, शारदे देवी ।

थके श्रुति शेष गुण गाते तेरी महिमा अन्न्नता है ।

हमें दो दान विद्या की नमस्तै शारदे देवी ।

अमित पद पदम् की शोभा सुरीली तान वीणा की,

हरे सब विघ्न बाधाएं प्रसीद शारदे देवी ।

दया की दृष्टि से हेरो हमें, हे शारदे देवी ।।

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
यह मां सरस्वती का आरती किसी ब्राह्मण विद्वान द्वारा रचित है, जिनका नाम मालूम न होने के वजह से यहां उनका नाम अंकित नहीं कर रहा हूं ।
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