▪️ अरविन्द श्रीवास्तव
नहीं लगती कौवे की पंचायत
बिजली के तारों पर
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राइफलें
जो किसी पत्ते की खड़खड़ाहट
कि दिशा में
तड़तड़ा उठी थीं
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Rifles
the rustling of a leaf
in that direction
had woken up furiously
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ब्रह्माण्ड का गिरमिटिया हूँ
अनुबंध पर आया हूँ
चंद दिनों के लिए
धरती पर
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●अरविन्द श्रीवास्तव
उन यादों को चमकाता हूँ मैं
जिसे समय ने बदरंग कर दिया है
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..कि जैसे समय स्याह अंधेरे में भटक चुका था
कि जैसे एक गिलहरी
शिकारी कुत्ते की गिरफ़्त मे आ चुकी थी
कि जैसे किसी निश्छल-कलकल बहती धारा में
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भाड़ में जाओ दुनिया के खूबसूरत चेहरों
क्रांति गीत और लाल आकाश
प्रेम-मिलन के भावुक शब्दों
गंध की तलाश में भटकती आत्माओं
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सुख ने पता कर लिया था
अपनी चकाचौंध के चार दिन
इसलिए भी उसने
ठहरा कर अंधेरे को कसूरवार
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कितनी घबराहट और बेचैनी थी
एक स्त्री के बगैर
पहेलियाँ चक्कर काट रही थी
रसोई के इर्द-गिर्द
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मामूली आदमी हूँ
असमय मरूंगा
तंग गलियों में
संक्रमण से
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