तुम्हारे हाथ Poem by Arvind Srivastava

तुम्हारे हाथ

ब्रह्माण्ड का गिरमिटिया हूँ
अनुबंध पर आया हूँ
चंद दिनों के लिए
धरती पर

साठ-सत्तर की थकान
उतारनी है इसी जगह
अनुबंध के अंतिम पल को
तुम्हारे नाम कर जाउंगा
समय के सबसे तेज़ घोड़े पर चढ़कर
लौट जाउँगा एक दिन
तुम्हारे हाथों
सौंप कर
कोई गुमनाम ख़त!

तुम्हारे हाथ
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अप्रवासी मजदूर यानी गिरमिटिया
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