हे सीते! इस युग में, फिर से उनको, मत वर आना । Poem by Saroj Gautam

हे सीते! इस युग में, फिर से उनको, मत वर आना ।

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हे सीते! इस युग में, फिर से उनको, मत वर आना ।
जो तुमको खोजने आएं, राम जी, खुद ही, 'ना' कर जाना।



क्योकि, एक बार फिर पटेगा, हीय धरा का।
होगा बेबस ही, फिर तुमको, उनमें धंस जाना।


कहां पता था, पहले तुमको, खुशी खुशी ही होगा वन जाना।
युद्ध में जीत, तुम्हे जो पाएंगें, उलटे पाव भी, पड़ेगा वन आना।


हे जानकी! मर्यादा तो, वो फिर भी! ही निभाएगें।
लव, कुश इस युग में भी, वन वन भटकने जाएंगे?


मात - पिता का प्रेम, फिर भी, ना वों पा पाएगें!
हां, लिए होंगें तुमने, जन्म जनमों के फेरे, उनसे!


हे वैदही! वो बेचारे! दो पाटो में फिर पिस जाएगें!
हे जानकी! वो अभागे! दो पाटो में फिर पिस जाएगें!


हे सीते! राम तो आवश्यक ही खोजने तुमको आएंगे ।
पर कलयुग में, क्या जरूरी, तुमको पा ही पाएगे!
'सरोज'

हे सीते! इस युग में, फिर से उनको, मत वर आना ।
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Epic story retold in current scenario of women empowerment
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