कागजों पर सब चलता,
बहती बयार जल चलता,
चलने को, सब ही चलता,
सच्चाई देख, आईना क्यों जलता!
काँव काँव कानों में चुभता,
कौवा कोकिला बन बिकता,
नयन पर पट्टी सा बंध जाता,
अंधों में काना राजा, सुहाता!
चलने को, यहां सब चलता,
अवसर से आगे, अक्सर चलता,
राह धुंधलाए बेखबर, बेसब्र चलता,
फकीरों पर, फाकों का, कहां कहर चलता!
कब तक, बांधेगी मुठ्ठी माटी,
मुठ्ठी ही, माटी हो जाएगी,
असत्य, मिथ्या सब धूल खाएगी
कल्पना ज्यों, नव्य सत्य रचाएगी!
तरूण तरंग, नवल ऊर्जा संग चलता,
नवीन आलोक में नवजीवन पलता,
नवोदित सत्य ही शाश्वत खिलता,
अबुझ प्यास, अनथक प्रयास जब चलता!
'सरोज'
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