बेचारी नहीं, मैं नारी हूँ, अपने आप पर ज़रा भारी हूं! Poem by Saroj Gautam

बेचारी नहीं, मैं नारी हूँ, अपने आप पर ज़रा भारी हूं!

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रंभा, अंबा, भगिनी, आत्मजा, सब ही में तो मुझको पाते हो!
सभी रूपों में, तुम समर्पित, क्यों मुझको ही उलझाते हो!
क्या दे सकते मुझको तुम, अखियाँ तक तो तुम चुराते हो ।
मेंरे आंचल -आंगन की खुशियाँ, सौदा तक कर, गिनवाते हो!

बेचारी नहीं, मैं नारी हूँ, अपने आप पर ज़रा भारी हूं!

एक के नखरें, सभी सर -आखों, बात दूजी की टाल न पाते हो!
तीजी के सपनों संग बंध जाते, चौथी के अश्रु अखियों लाते हो!
मुझ संग बंध, ढंग रंग कैसा ये? क्या विराटता से खोफ्त खाते हो!
सबक सभी तानों में बरबस, सबब सारे गिना ही जाते हो!

बेचारी नहीं, मैं नारी हूँ, अपने आप पर ज़रा भारी हूं!

समझा स्वयं कभी, आंचल-आंगन बोझ नहीं, ये तक समझ न पाते हो!
स्वरूप को मेरे ढका छिपा, तुम तो, स्वयं ही, स्वयं में घबराते हो!
क्या है ये! मुझको पाकर भी तुम, दूरी मुझसे बना पाते हो?
मैं मजबूर नहीं, ये तक तो मंजूर नहीं, सुख अपने हाथों जला जाते हो!

बेचारी नहीं मैं नारी हूँ, अपने आप पर ज़रा भारी हूँ।

टाला दशको तक जाने कैसे, लगती आज तो मैं एक बीमारी हूँ।
सिसकियों तक रोती जाती, रुल जाती, आज तक, नहीं हारी हूँ।
और जो टाला मुझको गौरिया भी मैं, चाहे वही खुटे वाली, जी, तुम्हारी हूं!
मोह मोह में डूबी सी, अपनी ही रूह राख में लिपटी, एक चिंगारी हूं!

बेचारी नहीं मैं नारी हूँ, अपने आप पर ज़रा भारी हूँ।

मेरे शब्दों की मार सहो ना, बस इतनी तैयारी कर पाते हो!
मेरी नज़रों से क्या कहोगे खुद को क्या समझाते हो!
तुम संघ बंधन, है सर्वस्व त्यागा, क्या ये समझ न पाते हो!
कैसे पा पाते, तुम तुच्छ भी मुझको, वहम में जीते जाते हो!

बेचारी नहीं, मैं नारी हूं, ना आजमाना, यकीनन पड़ती बहुत भारी हूं!

'सरोज'

बेचारी नहीं, मैं नारी हूँ, अपने आप पर ज़रा भारी हूं!
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This poem is about social conditions of Indian women. Her emotions, sacrifices, expectations
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