ऋतुपति Poem by Saroj Gautam

ऋतुपति

Rating: 5.0

हे, विमल, वासंती विप्लव! तिमिर को तार,
तुम आए!

स्वच्छंद, स्वतंत्र स्फूर्ति से, घनघोर घटा के,
पार तुम आए!

नव पल्लव, नव कुसुम, नूतन, नवीन,
धरा धार तुम आए!

स्वागत सत्कार, झंझावातों से, शुभ-सुभग,
साकार तुम लाए!

कलरव करते मिलिंद, शकुंत, सारिका,
साथ तुम लाए!

मेहप्रिय के नृत्य, इंद्रधनुषी आभा अद्वितीय,
संग सारंग लाए!


'सरोज '

ऋतुपति
Sunday, October 1, 2023
Topic(s) of this poem: spring,nature,birds,life,rain drops,rainbow
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
This poem depicts the nature in spring
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