हम पापा की परियां, हमें तो नई करवाचौथ मनानी! Poem by Saroj Gautam

हम पापा की परियां, हमें तो नई करवाचौथ मनानी!

छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी,
नए दौर में करवा चौथ, अब के नई मनानी,
हम पापा की परियां, हैं तो लिखी पढ़ी जनानी!
लगा लो नौकर चाकर, हुई हम तो घरों की रानी!

श्रृंगार और शान का दिवस, ये तो है सालाना,
इसे पूरे मन से इस बार तो, कुछ नया है निभाना,
निर्जला ना सही बस की, व्रत तो रख ही जाना,
निभ जाए जितना उतना ही, होता है बस निभाना!

ताने तेरे तरकश में थे बहुत, पुराने ओ जमाने,
तेरे चलाने से ही क्या, चलते हम सब जाते,
तूझे पता क्या? आते है, तुमको तो मुंह पिचकाने!
परवाह करते रहें तेरी ही, चाहे बस तू माने!



बदल गया जमाना, सवाल खुद पर उठाना जी,
जमाने को बद अब भी करते, कुछ मुठ्ठी भर ही,
अपना कौन किसे बेगाना, तुम जो किया करते हो!
अपनी जुबां की गुलामी, जी भर भर किया करते हो!

बेटियों के हक की बातें, ना तुम्हारे बस की हो,
मेरी मेरी कह अहंकार, बस पिया करते हो!
अपनो के लिए, ले राय, है किया जाता जो,
निभाएं सदा संग जाय हम, आता कुछ और तुमको?

रुलाने के बहाने तुम ढूंढो, चाहे कितने गिन भी,
हम तो जीने की खुशियां, खुद बना तो लेंगें ही,
कर पुराने जमाने हमको, कर ले अकेला कितना भी!
जंगल में मंगल खुद आप, हम तो सजा लेंगें ही!

मर मर के बांधे हो घर को, तुम पक्की डोर हो!
तो सुनो बहन बेटी बहु, सारी मम्मियां जो हो!
मान-सिंदूर-संग मांग को, अबकी जी भर सजाओ!
अबके कुछ निराला ही व्रत, तुम कर जाओ!

नारी नर को जन्म दे, नर से पिछड़ी जाती क्यों,
पालना दोनो को था समान, तुम वो कर जाती जो,
बताओ आधी दुनियां. बात समझ ना पाती तो,
आधी दुनिया खुद पर यो, इतना इतराती क्यों?

अजी निराला करवा अब के, तुमको नया सजाना!
अब के बरस तुम करवाचौथ, अजी ऐसे निभाना,
तुम्हारे जीने के जो मायने हैं, अजी खूब ही समझाना,
आधे दिन उपवास अबके, पति देव से भी करवाना!


'सरोज'

हम पापा की परियां, हमें तो नई करवाचौथ मनानी!
Thursday, October 26, 2023
Topic(s) of this poem: indian
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
. It is a celebration of the modern woman and her strength, resilience, and determination. It is also a powerful reminder that we must all continue to fight for gender equality.
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