धर यकीं, होता समझाना, पगले! मत घबराना! Poem by Saroj Gautam

धर यकीं, होता समझाना, पगले! मत घबराना!

Rating: 5.0

हों यकीं, इरादों पर जहां,
हार, हौसलों से, बड़ी कहां,
दिल को खुद ही, पड़ता बताना!
पास है मंजिल, कैसा घबराना?

धर यकीं, होता समझाना, पगले! मत घबराना!

कोल्हु के बैल सा पिसे, चाहे रात दिन,
काटेगा, संकट सारे, अपने गिन गिन!
जब सब, फ़िर रहें हो, यूं ही भटक,
तू रह, समर्पित, राह अपनी पकड़!

धर यकीं, होता समझाना, पगले! मत घबराना!

चाल चला, वो दूजे को काटे, गिरा मरा!
भाए सबको स्वार्थ, दुलारा भी, रहे बना!
खुद को, संभालना, दे दूजे को बाजू बढ़ा!
पूर्ण प्रयासों से जड़ा, रह इरादों पर खड़ा

धर यकीं, होता समझाना, पगले! मत घबराना!

'सरोज '

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