Leader (नेता) Poem by Ahatisham Alam

Leader (नेता)

Rating: 5.0

खुद को पत्थर मान अगर तुम शीशे से टकराओगे
इस संसार रुपी राजनीति में तभी तुम नेता कहलाओगे

सम्मुख कोई भी हो वो भी तो इंसान है
सोचो कब उससे कम तुम्हारा अपना अभिमान है
तुम्हारी आज की कार्यशैली ही तुम्हारा कल रखती है
बाधा कुछ भी हो खुद में वो अपना हल रखती है

अगर युद्धभीड़ में शामिल हुए तो उसी में खो जाओगे
जब राह नई चुनोगे तभी मार्गप्रवर्तक बन पाओगे
खुद को पत्थर मान अगर तुम शीशे से टकराओगे
इस संसार रूपी राजनीति में तभी तुम नेता कहलाओगे!

Sunday, February 21, 2016
Topic(s) of this poem: inspirational
COMMENTS OF THE POEM
Roseann Shawiak 05 March 2016

Wish I could read your poem. RoseAnn

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Ratnakar Mandlik 22 February 2016

Leaders of the day, well defined. Thanks for sharing.10 points.

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Rajnish Manga 22 February 2016

जीवन का व्यवहारिक ज्ञान निहित है आपकी इस कविता में. बहुत सुंदर. धन्यवाद. बाधा कुछ भी हो खुद में वो अपना हल रखती है

1 0 Reply
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