भुल हो गयी Poem by dhirajkumar taksande

भुल हो गयी

Rating: 5.0

उजला तो सूरज है
अंधेरे का ईलाज हो जाए
और रोशन हो जाए आँखे अगर
तो फिर जहाँ भी जाए पुरब हो जाए
********************************
उजाले को अपना समझने की भुल हो गई,
सुबह के इंतजार में राते युंही गुल हो गई.

उधार की रोशनी में अरसा गुजर गया,
जब जब डुबा सुरज इक कसक सी शुल हो गई.

क्या खाक दिन का आलम हैं ना वो नजर आया,
सितारो के टुटने से दर्पण पे धुल हो गई.

बोतले नई शराब वहीं, यहीं जनम की दास्तां,
काश न छुटता वो लम्हा जब कली फुल हो गई.

Sunday, September 7, 2014
Topic(s) of this poem: light
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success