सपने Poem by Sukhbir Singh Alagh

सपने

सपने देखा करो ओह यारों
सपने साकार भी होते हैं।

आज हम जिस मंजिल पर हैं
कईओ के ख़्वाब ही होते हैं।

बैठे बिठाए नहीं मिलती मंजिल
मेहनत करने वाले ही कामयाब होते हैं।

उनके सपने सिर्फ सपने ही रहेंगे
जो सपनों के नाम पर सोते हैं।

Saturday, April 15, 2017
Topic(s) of this poem: dream
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