जश्न आज़ादी का यूँही मनाते रहेंगे Poem by Ahatisham Alam

जश्न आज़ादी का यूँही मनाते रहेंगे

Rating: 5.0

नाम मज़हब का लेकर जो जो नफरत बो रहे हैं
इस आलम ने हमेशा उनसे अदावत की है
मोहब्बत की और दलील क्या दें
इस वतन के लिये अपनों से बग़ावत की है

जो मुल्क का नहीं वो ऐसा वतन छोड़ दे
जिसे हम हिन्दोस्तां कहते हैं वो चमन छोड़ दे
वो फ़रामोश कहीं और जा के बसे अब
इस पाक ज़मीं पे होना दफ़न छोड़ दे

दिलों से नफरत मिटाते रहेंगे
तराने वतन के सुनाते रहेंगे
हर साल आये ये मौका ऐ आलम
जश्न आज़ादी का यूँही मनाते रहेंगे

Monday, August 15, 2016
Topic(s) of this poem: patriotic
COMMENTS OF THE POEM
Madhuram Sharma 14 August 2017

very nice alam sir........

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Ramesh Rai 15 August 2016

Oh the golden bird where you have flown away. Come again and sing your chirping song to evolve new inspiration and aspiration.

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