Insaan Ki Bewakufiyan (Hindi Ghazal) इंसान की बेवकूफियां Poem by S.D. TIWARI

Insaan Ki Bewakufiyan (Hindi Ghazal) इंसान की बेवकूफियां

जन्म लेते ही, बेवकूफियों का बोझ उठा लेता है।
उन्हीं की बदौलत इंसान गलतियां बुला लेता है।

अक्ल के साथ खुदा ने, इसे बेवकूफियां भी बख्शीं
तभी तो अपने जाल में वो खुद को उलझा लेता है।

इंसान के भूलने की आदत भी, नीमत समझो
वरना बदले की आग में, इंसानियत जला लेता है।

बेवकूफियों के चलते, जब देखो भागता रहता
मंजिल की खबर न हो, मगर दौड़ लगा लेता है।

गलतियां ना करे तो, इंसान खुद को खुदा समझे
बेवकूफियों में उसे साथ मिले, हाथ मिला लेता है।

लिये होता है इंसान, कहीं न कहीं उदासी दिल में
बनावटी हंसी से मगर, वह उसको छुपा लेता है।

कितना जरूरी है, इंसान की बेवकूफियां भी यारों
इन्हीं बेवकूफियों पर तो, थोड़ा हँस हंसा लेता है।


(C) एस० डी० तिवारी

Thursday, January 8, 2015
Topic(s) of this poem: hindi,humor
COMMENTS OF THE POEM
M Asim Nehal 23 September 2015

Wonderful poem. Kya baat hai, कितनी जरूरी हैं, इंसान की बेवकूफियां यारों अपनी बेवकूफी पर ही तो, थोड़ा हँस लेता है.

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Geetha Jayakumar 24 January 2015

Sahi kaha aapney.... अक्ल के साथ खुदा ने बेवकूफियां भी बख्शीं तभी तो खुद को अपने जाल में उलझा लेता है. Beautiful poem with fantastic flow of words. Loved reading it. Thanks for sharing with us.

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