औकात जिसकी जितनी यहां पर Poem by ashutosh kumar upadhyay

औकात जिसकी जितनी यहां पर

औकात जिसकी जितनी यहां पर
मंजिल बस उतनी ही मिलेगी
पाना है तुमको सागर जो
लहरों सा रोज टकराना पड़ेगा

जिसकी जितनी है जिंदादिली यहां पर
खुशी उसको बस उतनी ही दिखेगी
पास हो बस गमों की चोटें जो
दिल को और बड़ा बनाना पड़ेगा

बैठे रहे किनारे पर अभी भी
जिंदगी से बस मार खाना पड़ेगा
रस्ता ना दिख रहा हो कोई जो
लक्ष्य तब बड़ा बनाना पड़ेगा

जिंदगी जीना है अगर हमें
लहरों सा रोज टकराना पड़ेगा

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