औकात जिसकी जितनी यहां पर
मंजिल बस उतनी ही मिलेगी
पाना है तुमको सागर जो
लहरों सा रोज टकराना पड़ेगा
जिसकी जितनी है जिंदादिली यहां पर
खुशी उसको बस उतनी ही दिखेगी
पास हो बस गमों की चोटें जो
दिल को और बड़ा बनाना पड़ेगा
बैठे रहे किनारे पर अभी भी
जिंदगी से बस मार खाना पड़ेगा
रस्ता ना दिख रहा हो कोई जो
लक्ष्य तब बड़ा बनाना पड़ेगा
जिंदगी जीना है अगर हमें
लहरों सा रोज टकराना पड़ेगा
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