दस बीस, साठ सत्तर से लेकर,
लाखों में बेच रहे लड़के
हाय ये कितने भूखे नंगे है
जो अपने बेटे तक को बेच रहे
कहते पढ़ाया, स्नातक लगा पैसा इतना
अब वो भी ना निकाला
तो कहा से लायेंगे इतना
कहते बनाया काबिल है खयाल रखेगा अपना और अपने का
वो पता चला रहा बेच रहे लड़के
शायद बेटी वाले भी खरीद रहे नौकर
इसीलिए तो घूम घूम कर,
खोज रहे ऐसे बेटे
नौकर ऐसा चाहिए उनको
जो खुश रख सके बेटी को
रहे कमाता खाता ढंग से
पूरी हर फरमाइश कर सके
कितना भी धन दे दो उनको
लेकिन वो तो भूखे हैं
बीना दौलत की बात न माने हरदम रहते रूठे हैं
दौलत के इस बाजार में,
नीलाम हो रहे लड़के
बेटी वाले कैसे खरीदे
भाव बोल रहे बड़के।
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