बारिश Poem by Lalit Kaira

बारिश

सड़क पर बुलबुले उठाती
बारिश की बूँदे
छपछपाते अनगिनत पैर
अरे!
ये फिसली अल्हड़ जवानी
प्रकृति और पानी से
सजी संवरी
बारिश के आह्लाद और
रोमांच को
कई गुना बढ़ा दिया
हवा में तैर गई
सैकड़ो मुस्कान

Monday, July 21, 2014
Topic(s) of this poem: art
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Lalit Kaira

Lalit Kaira

Binta, India
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