अस्तित्व Poem by Sharad Bhatia

अस्तित्व

Rating: 5.0

अस्तित्व

आज का मनुष्य अपना अस्तित्व भूल चुका है,
चंँद पैसे कमाने पर अपने "वज़ूद" से अपने आप को दरकिनार कर चुका है।।

भूल चुका अपना अतीत जिसमें वो रोया करता,
बार - बार ईश्वर से गुहार किया करता।।

आज खुद को "ईश्वर" समझ बैठा,
अपने को अपनों से अलग कर बैठा ।।

कभी जिसे जिंदगी का पता ना था,
वो आज जिंदगी के बारे मे अपनी बेवकूफी भरी राय दे रहा है ।

भूल गया वो गलिया जिसमें कभी वो नँगा घुमा करता,
आज उसमे अपने महंगे कपड़ों की नुमाईश कर रहा है,
औकात से ऊपर बढ़कर बात कर रहा है।।

शायद आज का मनुष्य अपना अस्तित्व भूल चुका है

नेता गिरी मे चंद चंदा देकर अपना नाम कर रहा है,
पोस्टर छ्पवा अपनी नुमाईश कर रहा है।।

आज का मनुष्य अपना अस्तित्व भूल चुका है

भूल चुका वो संस्कार जो माँ पिता जी ने सिखाये,
बस अपनी पैसों की जिंदगी में अपनी सभ्यता भूल चुका है।।

कभी मंदिर के बाहर भंडारे की लाईन मे खड़ा होता,
आज भिखारी को देख कर कार के शीशे चढ़ा लेता।।

कभी मंदिर मे अपनी टूटी चप्पल भी संभाल कर रखता,
आज अपने महँगे जुते के लिए नौकर खड़ा करता।।

आ तो जाए कोई रिश्तेदार,
बस उनके आगे अपनी बड़ाई कर रहा है।।
नहीं पूछ रहा उनका हाल चाल,
बस अपना राग अलाप गा रहा है।।

आज का मनुष्य अपना अस्तित्व भूल चुका है

खुद पढ़ा सरकारी स्कूल में,
अपने बच्चोंको मँहगे अंग्रेजी स्कूल मे पढ़ा रहा है।।

पहले छोटी से झोपड़ी को घर कहता,
अब ऊँचे पक्के मकान को "कोठी" कहता।।

पहले अपने नाम की पहचान अपने पिताजी के नाम से करवाता,
अबअपने नाम की पट्टिका के आगे "MR". लगाता।।

कभी भाई के साथ एक साथ रहने का वादा करता,
आज अलग रहने का "Agreement sign" करवा रहा हैं।।

कभी बहन से राखी बंधवाने के लिये नंगे पैर दौड़ा चला आता,
अब "E-Rakhi" भेज रहा।।


आज का मनुष्य अपना अस्तित्व भूल चुका है

होड़ जिंदगी ऐसे जी रहा है,
अपनों को छोड़ गैरों से यारी कर रहा है।।

आज का मनुष्य अपना अस्तित्व भूल चुका है

एक प्यारा सा एहसास मेरी नन्ही कलम से
जीवन का कटु सत्य आज का मनुष्य अपना अस्तित्व भूल चुका है
(शरद भाटिया)

Tuesday, September 22, 2020
Topic(s) of this poem: expression,feeling,sadness
COMMENTS OF THE POEM
Aarzoo Mehek 22 September 2020

दिल को छू जाने वाली कविता। सच को बखूबी बयान किया है। ढेरों दाद शरद। ५*

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M Asim Nehal 22 September 2020

मनुष्य के जीवन की एक कड़वी सच्चाई बड़ी खूबी से प्रस्तुत की आपने अपनी कविता में, पढ़कर अच्छा लगा, जिस संजीदगी से आपने जीवन को परखा है उसकी जितनी तारीफ की जाये काम है..10*****

0 0 Reply
Rajnish Manga 22 September 2020

आज का मनुष्य अपना अस्तित्व भूल चुका है, भूल गया वो गलिया जिसमें कभी वो नँगा घुमा करता.... //.... आपके अपने विवरण के अनुसार यह स्पष्ट हो जाता है कि वह जो पहले नंगा घूमा करता था, आज भी बादशाह वाली जादुई कमीज पहन कर नंगा ही घूम रहा है. बहुत बहुत धन्यवाद.

1 0 Reply
Varsha M 22 September 2020

Power and money ruin all This is were humility play the role. Understanding this takes whole life. If you abide in humility Power and money obey completely. We need to know how to use our bit intelligently. Very beautiful and touchy poetry. Bohut sare sabdo ka hindi nahi aata issliye angreji me Uttar diya.

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