पापा Poem by sushant jha

पापा

वो पथप्रदर्शक हैं, वो मार्गदर्शक हैं।
जिन जिसने सिखाया, चलना जिसने सिखाया तुम्हे,
तुम्हारी उंगलियाँ पकड़ कर।
हर ख़ुशी दी तुम्हे, खुद दुःख उठाकर।
वो पथप्रदर्शक हैं, वो मार्गदर्शक हैं।१।
याद हैं वो दिन, जब वो शाम को आते थे।
चॉकलेट लाते थे, चुटकुले सुनाते थे,
तुम्हे हंसाते थे।
चाहे कितना भी गम हो, उनके मन के अन्दर।
वो पथप्रदर्शक हैं, वो मार्गदर्शक हैं।२।
गर्मी की वो रातें, जब छत तप
जाती थी।
तुम्हे जब नींद
नहीं आती थी, वो पंखा हिलाते थे।
चाहे चुड़ हो वो दिनभर की मेहनत से थककर।
वो पथप्रदर्शक हैं, वो मार्गदर्शक हैं।३।
चाह नहीं है उन्हें तुमसे
किसी चीज की,
बस एक उम्मीद है की तुम दिखाओगे,
उनकी उम्मीदों पर खड़ा उतरकर।
क्योंकि तुम्हे भी चलाना है,
किसी को अपनी उंगलियाँ पकड़कर।
वो पथप्रदर्शक हैं, वो मार्गदर्शक हैं।
वो पापा हैं। वो पापा हैं। वो पापा हैं।४।

Saturday, October 25, 2014
Topic(s) of this poem: father
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sushant jha

sushant jha

jhanjharpur, Bihar
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