• आत्मा/आफ़ताब आलम'दरवेश'
मैं बैठा हूँ जीवन रथ पर
टूट जाता है जो थक थक कर
मैं अमर ये जीता मर मर
रथ अमर होता कर्मो पर//
चाहूं कभी ना छोड़ूँ रथ को
विधि का तोड़ूँ कैसे सत्य को
जहाँ की वस्तु वहाँ की वस्तु
क्यों कर भट्कूँ भला मैं दर-दर//
मैं हवा हूँ मैं चमक हूँ
जीवन का मैं ही लचक हूँ
रथ के सोंच का उर्जा मैं हूं
मुझसे जीवन जाता भर-भर//
राज क्या कोई मेरा खोलेगा
मुझ बिन कोई भला बोलेगा
भ्रम में जीने वालो सुन लो
नही सोता मैं जग -जग कर//
Phal ki chnta kiye bina apna karm karte raho(Bhagvad Geeta) A thoughtful poem.
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Aatma hi sach hai aur sharir bas chalawa, apka yeh kavita aatma ko choo gaya, dhanyavad :)