आत्मा Poem by Aftab Alam

आत्मा

Rating: 5.0

• आत्मा/आफ़ताब आलम'दरवेश'

मैं बैठा हूँ जीवन रथ पर
टूट जाता है जो थक थक कर
मैं अमर ये जीता मर मर
रथ अमर होता कर्मो पर//

चाहूं कभी ना छोड़ूँ रथ को
विधि का तोड़ूँ कैसे सत्य को
जहाँ की वस्तु वहाँ की वस्तु
क्यों कर भट्कूँ भला मैं दर-दर//

मैं हवा हूँ मैं चमक हूँ
जीवन का मैं ही लचक हूँ
रथ के सोंच का उर्जा मैं हूं
मुझसे जीवन जाता भर-भर//

राज क्या कोई मेरा खोलेगा
मुझ बिन कोई भला बोलेगा
भ्रम में जीने वालो सुन लो
नही सोता मैं जग -जग कर//

Thursday, September 25, 2014
Topic(s) of this poem: spirituality
COMMENTS OF THE POEM
Md Asadullah 28 September 2014

Aatma hi sach hai aur sharir bas chalawa, apka yeh kavita aatma ko choo gaya, dhanyavad :)

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Akhtar Jawad 25 September 2014

Phal ki chnta kiye bina apna karm karte raho(Bhagvad Geeta) A thoughtful poem.

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