वजूद Poem by Sukhbir Singh Alagh

वजूद

Rating: 5.0

आंखों की यह पलकें झपका के तो दिखा
सच बताऊ यह भी ना कर पाएगा।

उस परमात्मा के कारण ही तेरा वजूद है
उसके बिना, मिट्टी में मिल जाएगा।

यह पैसा, यह शरीर सब नाशवान हैं
कुछ भी साथ ना जाएगा।

मरने के बाद भी, कुछ लोगो की जरूरत होगी
नहीं तो 'सुखबीर' शमशान कैसे जाएगा।

Friday, May 26, 2017
Topic(s) of this poem: ego
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 26 May 2017

जीवन में आध्यात्म की ज़रूरत व खुद से हट कर सत्य को देख सकने की कला के संबंध में सुंदर अभिव्यक्ति. धन्यवाद, मित्र.

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