हम करेगे Poem by Ajay Srivastava

हम करेगे

चुनोती तुम दो स्वीकार हम करेगे|
राह मे काटे तुम बिछाऔ फिर भी हम मंजिल हम पा जाएगे|

नफरत तुम दो स्वीकार हम कर लेगे|
दिल को खाली तुम करो, दिल को भर हम देगे|

भेदभाव तुम करो अस्वीकार हम करेगे|
असमानता तुम भेजो, समानता को हम भेजेगे|

कानून को तुम तोडो अस्वीकार हम करेगे|
उदासीनता तुम फेलाऔ, सजगता का प्रचार हम करेगे|

अधिकार तुम रख लो, कर्तव्य हम रख लेते है|
जनतंत्र का अपमान तुम करो, जनतंत्र का समान्न हम करेगे |

हम करेगे
Monday, July 4, 2016
Topic(s) of this poem: responsibility
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Ajay Srivastava

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